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मधुकर गीत / नरेन्द्र शर्मा

है फूल फूल में स्नेह-सुधा! मत माँग—कली मुरझाएगी!

कुछ ऐसी तेरी भाग्य-रेख, मन-मधुकर तेरी चाह देख,
इस उपवन की हर एक कली, मुसकाएगी, मुरझाएगी!

है शाप कि सुन तेरा गुंजन जो मुग्धा खोलेगी लोचन,
वह पंखड़ियों के पलक-पाँवड़े बिछा स्वयं झर जाएगी!

है झूठ कि रीता है उपवन, है झूठ कि सूखा है मधुवन,
पर तू मत देख उधर—पल में पतझर की आँधी आएगी!

है फूल फूल में स्नेह-सुधा, मत माँग—कली मुरझाएगी!