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मधुकलश (कविता) / हरिवंशराय बच्चन


है आज भरा जीवन मुझमें,
है आज भरी मेरी गागर !

      :१:
सर में जीवन है, इससे ही
वह लहराता रहता प्रतिपल,
सरिता में जीवन,इससे ही
वह गाती जाती है कल-कल
         निर्झर में जीवन,इससे ही
         वह झर-झर झरता रहता है,
    जीवन ही देता रहता है
    नद को द्रुतगति,नद को हलचल,
लहरें उठती,लहरें गिरती,
लहरें बढ़ती,लहरें हटती;
जीवन से चंचल हैं लहरें,
जीवन से अस्थिर है सागर.
है आज भरा जीवन मुझमें,
है आज भरी मेरी गागर !
  

      :२:
नभ का जीवन प्रति रजनी में
कर उठता है जगमग-जगमग,
जलकर तारक-दल-दीपों में;
सज नीलम का प्रासाद सुभग,
          दिन में पट रंग-बिरंगे औ'
          सतरंगे बन तन ढँकता,
    प्रातः-सायं कलरव करता
    बन चंचल पर दल के दल खग,
प्रार्वट में विद्युत् हँसता,
रोता बादल की बूंदों में,
करती है व्यक्त धरा जीवन,
होकर तृणमय होकर उर्वर.
है आज भरा मेरा जीवन
है आज भरी मेरी गागर !

      :३:
मारुत का जीवन बहता है
गिरि-कानन पर करता हर-हर,
तरुवर लतिकाओं का जीवन
कर उठता है मरमर-मरमर,
         पल्लव का,पर बन अम्बर में
         उड़ जाने की इच्छा करता ,
    शाखाओं पर,झूमा करता
    दाएँ-बाएँ नीचे-ऊपर,
तृण शिशु,जिनका हो पाया है
अब तक मुखरित कल कंठ नहीं,
दिखला देते अपना जीवन
फड़का देते अनजान अधर.
है आज भरा मेरा जीवन
है आज भरी मेरी गागर !

      :४:

जल में,थल में,नभ मंडल में
है जीवन की धरा बहती,
संसृति के कूल-किनारों को
प्रतिक्षण सिंचित करती रहती,
          इस धारा के तट पर ही है
          मेरी यह सुंदर सी बस्ती--
     सुंदर सी नगरी जिसको है
     सब दुनिया मधुशाला कहती;
मैं हूँ इस नगरी की रानी
इसकी देवी,इसकी प्रतिमा,
इससे मेरा सम्बंध अतल,
इससे मेरा सम्बंध अमर.
है आज भरा मेरा जीवन
है आज भरी मेरी गागर !

      :५:

पल ड्योढ़ी पर,पल आंगन में,
पल छज्जों और झरोखों पर
मैं क्यों न रहूँ जब आने को
मेरे मधु के प्रेमी सुंदर,
           जब खोज किसी की हों करते
           दृग दूर क्षितिज पर ओर सभी,
    किस विधि से मैं गंभीर बनूँ
    अपने नयनों को नीचे कर,
मरु की नीरवता का अभिनय
मैं कर ही कैसे सकती हूँ,
जब निष्कारण ही आज रहे
मुस्कान-हँसी के निर्झर झर.
है आज भरा मेरा जीवन
है आज भरी मेरी गागर !