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मधुमक्खियाँ / पवन करण

मधुमक्खियाँ हैरान हैं, नहीं सूझता उन्हें
वे क्या करें हमेशा होता है
अँधेरे की चादर ओढ़े कुछ हाथ आते हें
और उनका बूँद-बूँद जुड़ा शहद

लूटकर ले जाते हें
मधुमक्खियाँ दुखी हैं, शहद बचाए रखने की
इच्छा शक्ति, अपने विषैले डंक
उन्हें कमज़ोर लगते हैं

जब वे देखती हैं कि कोई कुछ नहीं कहता
जब उनसे लूटा शहद सरेआम बेचा जाता है
मधुमक्खियाँ नहीं जानतीं अपनी
शिकायत लेकर किसके पास जाएँ

किस थाने में लिखाएँ इसके ख़िलाफ़ रपट
कि हर एक निग़ाह, हर एक जीभ
उनके शहद की तरफ़ ललचाती नज़र आती है
मधुमक्खियों के उदासी भरे चेहरे बतलाते हैं

ताक़त के ज़ोर पर आततायी
जिनकी पैदावार लूट लेते हैं
उन किसानों और उन दुखियारियों की
तकलीफ़ का रंग कितना मिलता-जुलता है