आज भी जब लोरी के तान
इन कानों में है पड़ जाती
ममता तेरी हे माँ मेरी
रोम-रोम झंकृत कर जाती
अमृत की बूंदों की भांति
नस-नस में जीवन बरसाती
लाखों मील की दूरी से भी
इन आँखों में मोती भर लाती
तेरे आँचल की ठंडी छाया
मधुर स्मृतियाँ सदा जगाती
शीतलता चन्दन सी मैया
तेरे हाथों की भूल न पाती
दूर बहुत मैं आज मगर
पल-पल तेरी ही याद सताती
अब भी सपनों में तू आकर
ऊँच-नीच मुझको समझाती
पंख यदि होते मेरे तो
उड़ कर तेरे ही द्वारे आती
ममता की रिमझिम वर्षा
नित प्रतिदिन मुखको नहलाती
काश कभी ऐसा हो पाता
बचपन के पलछिन वापस पाती