Last modified on 8 दिसम्बर 2009, at 12:26

मधु के दिन मेरे गए बीत / नरेन्द्र शर्मा

मधु के दिन मेरे गए बीत!(२)

मैँने भी मधु के गीत रचे,
मेरे मन की मधुशाला मेँ
यदि होँ मेरे कुछ गीत बचे,
तो उन गीतोँ के कारण ही,
कुछ और निभा ले प्रीत-रीत!
मधु के दिन मेरे गए बीत!(२)

मधु कहाँ, यहाँ गंगा-जल है!
प्रभु के चरणोँ मे रखने को,
जीवन का पका हुआ फल है!
मन हार चुका मधुसदन को,
मैँ भूल चुका मधु-भरे गीत!
मधु के दिन मेरे गए बीत!(२)

वह गुपचुप प्रेम-भरीँ बातेँ,(२)
यह मुरझाया मन भूल चुका
वन-कुंजोँ की गुंजित रातेँ (२)
मधु-कलषोँ के छलकाने की
हो गई , मधुर-बेला व्यतीत!
मधु के दिन मेरे गए बीत!(२)