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मधु पिए मधुमास आया / अमरेन्द्र

मधु पिए मधुमास आया;
आज पाहुन पास आया !

पुष्प को आई हँसी क्या
बिछ गये मकरन्द खुल कर,
चीर कर नभ नील गिरती
रेशमी यह धूप झर-झर;
कूक से अमराइयों को
कर रही बेचैन कोयल,
कोहवर में जग लगे यह
ज्यों सरोवर-स्वर्ण उत्पल !
क्या यहाँ उद्धव करेगा,
गोपियों का रास आया ।

क्या कहा हारिल, भ्रमर ने
क्या पपीहे ने कहा कुछ,
क्या कहा कचनार ने ही
और महुए ने कहा कुछ;
एक आमंत्राण मिला बस
माधवी संग वकुल आया,
ओढ़ कर पीताम्बरी को
बौर ने सब कुछ निभाया।
चैत ने ली चुटकियाँ थी
तो नहीं सन्यास आया ।