नयन-कुहाट कपाट लगो, धरनी सुनि श्रौन पुकार पुकारो।
नाक सुवास कुवास न चाहत, जीभ घने वकवादन हारो॥
हाथ नहीं हथियार छुवै, चुप चरनन हूँ चलनार विसारो।
इन्द्रिय अधोमुखि औंधि रही, मन मोहि रहो मनमोहन प्यारो॥22॥
नयन-कुहाट कपाट लगो, धरनी सुनि श्रौन पुकार पुकारो।
नाक सुवास कुवास न चाहत, जीभ घने वकवादन हारो॥
हाथ नहीं हथियार छुवै, चुप चरनन हूँ चलनार विसारो।
इन्द्रिय अधोमुखि औंधि रही, मन मोहि रहो मनमोहन प्यारो॥22॥