Last modified on 9 जनवरी 2011, at 09:27

मनुष्य / केदारनाथ अग्रवाल


कहाँ नहीं पराजित हो रहा है मनुष्य
आज की व्यवस्था में संतप्त?
कहाँ नहीं अपराजित होने का प्रयास कर रहा है मनुष्य
आज की व्यवस्था में उद्विग्न?
क्रान्ति से दुर्द्घर्ष को निश्चय जीतेगा मनुष्य।
शान्ति से निश्चय नया निर्माण करेगा मनुष्य
संकट और संताप को अवश्य हरेगा मनुष्य।

रचनाकाल: ३०-०९-१९६०