सर ऊंचा
माथा बेदाग
आंखों में पानी
मुह में जुबान सच्ची
सच्ची जुबान में
मिठास
शरीर का रंग चाहे जो
मन पर
उजरा
हाथों में कोई न कोई काम
हुनर लायक
पीठ दोहरी
पांव परिश्रमी
किस सदी के
मनुष्य की बात कर रहे कवि जी !
सर ऊंचा
माथा बेदाग
आंखों में पानी
मुह में जुबान सच्ची
सच्ची जुबान में
मिठास
शरीर का रंग चाहे जो
मन पर
उजरा
हाथों में कोई न कोई काम
हुनर लायक
पीठ दोहरी
पांव परिश्रमी
किस सदी के
मनुष्य की बात कर रहे कवि जी !