लुटी-पिटी
विश्वासों
और अपनों द्वारा छली गई
मेरी संवेदना
ज़िंदा है
मनुष्य की प्रत्याशा में
संवेदन शून्य समय में भी
लुटी-पिटी
विश्वासों
और अपनों द्वारा छली गई
मेरी संवेदना
ज़िंदा है
मनुष्य की प्रत्याशा में
संवेदन शून्य समय में भी