कत्तेॅ भयानक लागै
मनोॅ के चुप्पी
छिनमान
आँधी के आवै वाला खामोशिये नाँखी ।
मतरकि एकरा सेॅ की ?
हमरोॅ संकल्प
विधाता केॅ चुनौतिये तेॅ छेकै
मनेॅ कभियो हार नै मानै छै
तखनी आपनोॅ सब्भे टा जोर
लगाय दै छै
कोय नया केॅ सिरजै में
उतरी जाय छै
हिमालय के ऊश्ँचाई छोड़ी
मोॅन के समन्दर मेॅ
आरो तबेॅ कोय उल्लास के महाद्वीप
निकाली आवै छै ।