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मनोॅ रो बात / धनन्जय मिश्र

हेकरा कहबै कि होकरा कहबै
केकरा कहबै मनोॅ रोॅ बात
सुनी-सुनी केॅ उल्टे हसतै
केना केॅ काटबै दुखोॅ रोॅ रात।

सोचै छियै कही कि होतै
सभ्भे बोलै छै आपनोॅ बात
सभ्भे दिलोॅ में लोभै छै घुसलोॅ
लोभे में बितै छै दिन और रात।

कोय नै सोचै छै दिलोॅ में आपनोॅ
केना केॅ बदलतै देशोॅ रोॅ हालात
देशोॅ में गर मारा-मारी होतै
सभ्भे दिन रहतै कमाते-कमात।

यही लेॅ कहै छी, सुनो हो भइया
करोॅ नै तोहें पाँच रोॅ सात
आपनोॅ खइयोॅ लोगोॅ क खिलैयौ
तबेॅ ही होतै प्रेम रोॅ बरसात।

प्रेम सें जबेॅ हिल मिली रहबोॅ
चारो ओर लागतै बराते-बरात
जीवन अर्थ तखनिये बुझवै
गीतोॅ में देने छै यही सौगात।