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मन्त्रोंपचार / चेस्लाव मिलोश / श्रीविलास सिंह

मानवीय तर्क है सुन्दर और अपराजेय।
नहीं कोई अवरोध, न ही कटीले तार, न तो पुस्तकों का विनाश,
न ही निर्वासन का कोई दण्ड असरकारक होगा इसके विरुद्ध।
यह करता है स्थापित भाषा में सार्वभौम विचार,
और पथ दर्शाता हैै हमारे हाथों को ताकि हम लिखें 'सत्य और न्याय'
बड़े अक्षरों में और 'झूठ और अत्याचार' छोटे में।
'जो होना चाहिए' उसे रखता है 'जो है' उससे ऊपर,
यह शत्रु है निराशा का और आशा का मित्र।
यह नहीं जानता अलग यूनानियों से यहूदी और मालिकों से अलग दास
देता है हमें संपत्ति दुनियाँ की प्रबंधन की ख़ातिर।
यह बचाता है आडम्बरहीन और पारदर्शी वाक्याशों को
यातनामय शब्दों की अश्लील असंगति से।
यह कहता है कि सब कुछ है नया सृष्टि में,
खोलता है अतीत की जमी हुई मुट्ठी को।
सुन्दर और युवा हैं 'सत्य और प्रेम'
और कविता जो उसकी साथिन है अच्छाई की सेवा में।
अभी कल ही तो प्रकृति ने मनाया है उत्सव उनके जन्म का,
आया है समाचार पर्वतों के पास एक यूनिकार्न और एक प्रतिध्वनि द्वारा,
उनकी मित्रता होगी वैभव पूर्ण और निस्सीम होगा उनका समय।
उनके शत्रुओं ने सौप दिया है ख़ुद को विनाश के हाथों में।