पीटो, और पीटो !
बुढ़िया हो गई हूँ,
एक अरसे से किसी ने पीटा नहीं ।
राजपुत्र, तुम्हें क्या पता,
इस रनिवास में क्या-क्या होता रहता है ।
दवा बनकर दर्द ऊब से उबरने देता है ।
पीट-पीटकर तुम्हारे हाथ ही थक जाएँगे ।
अकेले कमरे में अपने घावों को सहलाते हुए
कुछ देर के लिए
मैं जवानी के दिनों में लौट जाऊँगी ।
हर चोट मुझे बताएगी
वह चोट मेरी नहीं
कैकेयी की है,
जिसे पीटना
तुम्हारी मर्यादा के विपरीत होता ।
हाँ-हाँ,
पीटो, और पीटो !
एक अरसे के बाद
मुझे छू रहे हैं
राजघराने के हाथ ।