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मन (4) / कन्हैया लाल सेठिया

कर बो कर
खिर खिण घोचो
मत हूण दै
निसंक
नहीं’स ओ
जलम रो रूळेड़
फिरैलो हांडतो
करैलो आपरी जाणी
घालैलो फोड़ा
जे चावै
ओ चालै गेलै सर
भरतो रह चिंतण रा चंूठिया
उधेड़तो रह इण रा बखिया
जणां मानसी
आंकस
ओ सिर फिरयो !