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मन / अर्जुनदेव चारण
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घर तौ एक नाम है भरोसै रौ
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बेटी
खोलै घर रौ आडौ
पीढियां रौ मारग
आगत री आगळां
पण
कदेई नीं खोलै
आपरौ मन