मन करता है, किसी रात में
चुपके से उड़ जाऊँ,
आसमान की सैर करूँ फिर
तारों के घर जाऊ
देखूँ कितना बड़ा गाँव है
कितनी खेती-बारी,
माटी-धूल वहाँ भी है कुछ
या केवल चिनगारी।
चंदा के सँग क्या रिश्ता है
सूरज से क्या नाता
भूले-भटके भी कोई क्यों
नहीं धरा पर आता।
चाँदी जैसी चमक दमक, फिर
क्यों इतना शरमाते,
रात-रात भर जागा करते
सुबह कहाँ सो जाते?