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मन का उपवन / त्रिलोक सिंह ठकुरेला

तुम आए तो
मन का उपवन
महक गया।

उड़ने लगीं
तितलियाँ सुख की,
खिले कमल
पाकर तुम्हें
थिरकता रहता
मन चंचल

प्रेम-गंध पा
मुग्ध भ्रमर - मन
बहक गया।

कुछ खुशबू,
कुछ रंग प्यार के,
गये बरस
सारा जीवन
मधुमय होकर
हुआ सरस

सुर्ख गुलाब
खिला चेहरे पर
दहक गया