मन किसी का यों किरण से
बाँध कर चंचल
फेंकती हो क्यों किसी पर
तुम उबलता जल
तब मरण के पर्व से भी
रोक लाया रूप
अब नयन में आँजती हो
चिलचिलाती धूप
प्राण ले लेगा किसी का
भीलनी ! यह छल
फेंकती हो क्यों किसी पर
तुम उबलता जल
जबकि बतलाया तुम्हीं ने
वंदना का अर्थ
फिर किसी की आरती को
कर रही क्यों व्यर्थ
चाहते हैं सहज स्वीकृति
ये समर्पित पल
फेंकती हो क्यों किसी पर
तुम उबलता जल