जब मन की लाशें
डूबती हैं कुएँ में
रस्सी पीटती है छाती
मौत हिफ़ाजत से रखती है पैर
रूहें अपना वंश बढ़ाने लगती हैं
इक पत्थर धीरे-धीरे तोड़ता है चूडियाँ
साँसों की....
जब मन की लाशें
डूबती हैं कुएँ में
रस्सी पीटती है छाती
मौत हिफ़ाजत से रखती है पैर
रूहें अपना वंश बढ़ाने लगती हैं
इक पत्थर धीरे-धीरे तोड़ता है चूडियाँ
साँसों की....