Last modified on 4 अगस्त 2021, at 22:25

मन के नीड़ / श्रवण कुमार सेठ

यहां-वहां बिखरे
थे तिनके,
चिड़िया ले आई
कुछ चुन के,

आपस में तिनकों
को बुन के
नीड़ बनाई अपने
मन के।