मन तुम कसन करहु रजपूती।
गगन नगारा बाजु गहागहि, काहे रहो तुम सूती।
पांच पचीस तीन दल ठाढ़ो, इन सँग सैन बहूती।
अब तोहि घेरी मारन चाहत, जब पिंजरा मँह तूती।
पइहो राज समाज अमर पद, ह्वै रहु विमल विभूति।
धरनी दास विचारि कहतु है, दूसर नाहिं सपूती।
मन तुम कसन करहु रजपूती।
गगन नगारा बाजु गहागहि, काहे रहो तुम सूती।
पांच पचीस तीन दल ठाढ़ो, इन सँग सैन बहूती।
अब तोहि घेरी मारन चाहत, जब पिंजरा मँह तूती।
पइहो राज समाज अमर पद, ह्वै रहु विमल विभूति।
धरनी दास विचारि कहतु है, दूसर नाहिं सपूती।