Last modified on 11 सितम्बर 2009, at 13:51

मन ना रँगाए, रँगाए जोगी कपड़ा

मन ना रँगाए, रँगाए जोगी कपड़ा ।।
आसन मारि मंदिर में बैठे,
ब्रम्ह-छाँड़ि पूजन लगे पथरा ।।
कनवा फड़ाय जटवा बढ़ौले,
दाढ़ी बाढ़ाय जोगी होई गेलें बकरा ।।
जंगल जाये जोगी धुनिया रमौले
काम जराए जोगी होए गैले हिजड़ा ।।
मथवा मुड़ाय जोगी कपड़ो रंगौले,
गीता बाँच के होय गैले लबरा ।।
कहहिं कबीर सुनो भाई साधो,
जम दरवजवा बाँधल जैबे पकड़ा ।।