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मन बगिया / सुरंगमा यादव

1
प्रेम के किस्से
दर्द की जागीर है
हमारे हिस्से ।
2
मन एकाकी
गहन अंधकार
दीप-सा जला।
3
मन की रेत
कुरेदी तनिक -सी
नमी ही नमी।
4

कोमल तंतु
विश्वास जब टूटा
नेह भी रूठा।
5
देह से परे
कभी मन को मेरे
छू कर देखो।
6
करूँ प्रतीक्षा
ये मन-महाकाव्य
बाँचे तो कोई ।
7
नभ में तारे
उभरे मन पर
पीड़ा के छाले।
8
भाव प्रकोष्ठ
कितनी आकृतियाँ
फिर भी रिक्त ।
9
आँसू न कहो
पीड़ा के सागर से
छलकी बूँदें ।
10
आँखों में नमी
उमड़ी है बदली
मन में कहीं ।
11
मन बगिया
कलरव करते
यादों के पंछी