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मन भँवरा / पीसी लाल यादव

मन भँवरा, मन भँवरा, चारों मुुड़ा घूम आबे।
गुनगुन गुनगुन गीत पिरित के गा के झू जाबे॥

लोक कला के फुलवारी म,
महर-महर फूले फुलवा।
मया-पिरित डोरी बांधे,
जिनगी ह झूले झुलवा॥

दया-मया के गीत झरे, मीठ बोली चूम जाबे।
मन भँवरा, मन भँवरा, चारों मुुड़ा घूम आबे॥

अंधियारी ह लिलय झन,
पिरित के दिया बाती ल।
जनम जुग जतन कर जोही,
अपन पुरखौती थाती ल॥

कला के सुघरई भरोसा, ओला-खोला घूम आबे।
मन भँवरा, मन भँवरा, चारों मुुड़ा घूम आबे॥

करमा ददरिया सुआ-पंथी
नाचा गम्मत अनमोल धरोहर।
जस फाग पंडवानी-डंडा,
कहाँ कोनो एखर बरोबर॥

माटी के महमई हर बगरे, दे के अइसे हूम आबे।
मन भँवरा, मन भँवरा, चारों मुुड़ा घूम आबे॥