Last modified on 17 दिसम्बर 2019, at 22:54

मन मंदिर / लता सिन्हा ‘ज्योतिर्मय’

मेरे मन मंदिर में श्याम बसे
बने द्वारपाल नारायण हैं,
खड़े सांवरिया नयनों में अड़े
कभी प्रीत न हुआ पलायन है।

मन मधुवन में घनश्याम मगन
संग ज्योतिर्मय प्रभु रमण करें,
हुई बावली सुन मुरली की धुन
गोविंद मिले स्वयं वरण करें।

जो अलख जगा ली श्याम नाम
इस जग की बैरन बन बैठी,
पर दोषी तो यह हृदय रहा
बड़भागिनी नयनन क्यूँ रूठी?

न रूठ सखी, इतरा ले अभी
गोपियन सब टेक लगाएंगी,
भले छलकी थी तू खुशियों से
ले श्याम का नाम सताएंगी।

हिय स्पन्दन तू संभल संभल
न छेड़ मोहे, क्यूँ अधीर बड़ी।
जब सांवरिया मोरे अंग लगें
खो देना संयम मिलन घड़ी।

ऐ चंचल कंगना अब थम ले
सुन धैर्य तनिक तू भी रख ले,
जब सांवरे गलबहियां झूमूं
जी भर के खनकना मिल के गले।

अरि बावली पायल संभव संभल
पग बेहक रहे पर तू न मचल,
प्रभु रास रचें, संग जब नाचूं
तब रूनझुन करना प्रेम पहल।

रेशम की चुनर, सखी सुन तो इधर
लहरा न अभी, तू धीरज धर,
जब आलिंगन मोहे श्याम भरें
तब उड़ जाना कहीं, दूर मगर।

कारी कोयलिया तू गीत सुना
भंवरा भी गुंजन करता जा,
ज्यों रम जाऊँ बंसी धुन,
तू साक्ष्य मिलन का बनता जा।

ऐ तरूवर कुसुम के सुनलो ना
तुम मतवाले बन झूमो ना,
तुझे टेक लिए जब श्याम खड़े
तब पुष्प की वर्षा तुम करना।

मन मयूरा तू छमछम करना
चलो पंख पसारे नाचो ना
रंग ज्योतिर्मय के रंग, तू भी
मेरे मनमोहन का मन हरना।