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मन मारा है / मोहन अम्बर

गीत वंशियों चैन-भरम में जय के गीत न गा देना,
अभी आदमी दुखियारा है अभी आदमी दुखियारा।
आज चाँद को दोष नहीं दो उससे क्या आनी-जानी,

जब कि सूर्य पर जीत रही है श्याम घनों की शैतानी,
कुछ बादल जो उजले दिखते वे तो सिर्फ़ प्रचारक है,
चौकीदारों! भोर-भरम में मत कंदील बुझा देना,

अभी गाँव में अँधियारा है अभी गाँव में अँधियारा।
अभी बहिन की बाँधी राखी पूरे वर्ष दुखाती है,
और पुराने कपड़ों में ही ईद मनाली जाती है,

अभी सर्जन का सुफल व्यस्त है इमारतें रँगवाने में,
ओ संस्कृतियों! भरम-भरम में दीपोत्सव न मना लेना,
अभी सत्य तो बंजारा है अभी सत्य तो बंजारा।

ज्ञान, तनिक तुम ऐनक बदलो तब कुछ साफ़ दिखेगा ही,
समय तराजू के पलड़ों में दुख का बोझ झुकेगा ही।
अभी परिश्रम पेट बाँध कर ईंट-ईंट पर रखता है।

स्वप्न लुटेरों, स्वार्थ-स्वार्थ में और न स्वेद चुरा लेना,
अभी दर्द ने मन मारा है अभी दर्द ने मन मारा।