मन में
कई प्रश्न
बार - बार
उमड़ते रहते
पूछना चाहती
अलकनन्दा से
किसके लिए
यूँ बहती हो
बिना थके, निरन्तर
पूछना चाहती
विराट पहाड़ पर उगे
उस जंगली फूल से
किसके लिए
यूँ इठला कर
खिलते, महकते हो
पूछना चाहती
ऊँची पहाड़ी पर
क़तार में खड़े
देवदार के वृक्षों से
किसकी राह तकते हो
किसके स्वागत में
यूँ झूमते हो