Last modified on 10 सितम्बर 2011, at 12:20

मन से मरने / हरीश बी० शर्मा


नाते एक रचनाकार
तलाशे जाते हैं संस्कार
पारिवारिक नहीं, वैचारिक
कवि होना यानी, आदमी नहीं होना
कसाई होना भावनाओं के पेटे
होना ऐसी रेवड़ की भेड़
जिसका गडरिया दिखता नहीं
हांक सुनाई देती रहती है
अपने कथित सच की मीमांसा को
गहराई कहते
साबित करने अपना वजूद
अंगेजते हैं दूजों के विचार,
तोड़ते हैं अपनी हवेलियां
घोटते रहते हैं गला अनचाहों का
शब्द बना हथियार।
वार पर पार
जीने का सामान
यही तो है जिसके सहारे जीवित हैं हम
अभाव में इसके
दूभर हो जाएगा पहचान का संकट
जीने का सामान नहीं जुटा पाया तो
कैस मन से मर पाऊंगा।