ममता मेरी, मुझको लाचार न कर!
आँधी के कंधों पर ही चलने दे,
ऊष्म की आहों पर ही पलने दे;
हरियाली का मुझसे अब हाल न कह
बगिया फल आई है तो फलने दे!
ठंढक देकर मुझको हिमहार न कर!
टकराता हूँ जलती चट्टानों से,
ऊपर ही उठता हूँ तूफानों से;
बड़वा-दावा की भी परवाह नहीं,
बस, दिल घबराता है हिमवानों से!
हिम-आसन से मेरा सत्कार न कर!