की करवै हम प्रशासन सें आशा
सरकारी जमीन पेॅ नेता के बाशा
गेट पेॅ खड़ा सिपाही सोचै छै-
आंघैवै की-सुतिये जाय छियै ।
सरकार कहलखिन-पर्यावरण बचावोॅ
सड़क के कोरे-कोर वृक्ष लगावोॅ
चोरबा बैठ केॅ डाल पेॅ सोचै छै
छाँटवै की-काटिये दै छियै ।
हमरा घोॅर में तेॅ बहार आय ऐलै
डेढ़िया पर जखनी भौजी के भाय ऐलै
परोठा में घी लगैतें भौजी सोचै छै
मखैवै की-छाँकिये दै छियै ।
मजनू परलखिन लैला के प्यार में
बदनाम होलखिन सारे बाजार में
लैला के लट में अटकल मजनू सोचै छै
हुक-हुकैवै की-मरिये जाय छियै ।
वेद-शास्त्रा सब देखलियै
पतरा देखी केॅ जतरा बनैलियै
गाड़ी पर भीड़ देखी केॅ सोचेॅ पारलेॅ
चढ़वै कीलटकिये जाय छियै ।
पैचा लेॅ केॅ घाट पहुँचलियै
कर्जा लै केॅ भोज करलियै
पत्ता पर बैठ केॅ समाज सोचै छै
चिवैवै की निगलिये जाय छियै ।