कवि वरयाम सिंह के लिए
मेरी गहरी नींद में उसने
टार्च की लम्बी रोशनी फेंकी
और मैंने उसे अपने अन्दर गिरती बर्फ़ में
पेड़ के नीचे खड़े देखा
रात के घने अंधेरे में कहा उसने
मैं न तुमसे प्रेम करूंगी और न विवाह
मैं बचाना चाहती हूँ तुम्हें ध्वस्त होने से
मैंने उसे अपनी माँ के बारे में बताया
जिसने हमारे नए वर्ष की सुबह
मुँह देखने के लिए
सिरहाने की थाली में रखा था
उसका कविता-संग्रह
उसने महसूस किया दुनिया में हर कहीं
वह अपने ही घर में है
उसने जानना चाहा मेरे उस प्रेम के बारे में
जिसने धकेल दिया मुझे
जलावतनी में
वह उलटती-पलटती रही
मेरी फिर से जमा हुई किताबों को
और कुरेदती रही
मेरे छूटे हुए वतन की स्मृतियों को
मैंने उससे शिकायत की
लम्बे अर्से से चिट्ठी न लिखने की
वह भागी
गिरती हुई बर्फ़ में यह कहकर
पहले लेकर आऊंगी
कविताओं के दिन