Last modified on 27 जुलाई 2016, at 10:30

मरी नहीं होंगी इच्छाएँ / नरेन्द्र पुण्डरीक

इस जीवन में तो उम्मीद नहीं है मुझे
अगले जन्म जैसा कुछ
होता है में नहीं है विश्वास,

आशा नही है कि
नहा पाऊँगा नदी में उसी तरह
जैसे नहाता था साथी
लड़के-लड़कियों के बीच,

लड़के हो गए होंगे
मेरी ही तरह अधबूढ़े
लेकिन मरी नहीं होगी
मेरी ही तरह उनकी इच्छाएँ,

लड़कियाँ तो बुढ़ा गई होंगी इतनी कि
इच्छा ही नही जन्म ले रही होगी
एकाध ही होंगी
जिन्हें मिला होगा अच्छा घर-वर
उनके मन-मुकुर में
कहीं ज़रूर बचा हूँगा मैं
लेकिन सोंचता हूँ कि
क्या पलट कर देखनें का
साहस भी बचा होगा उनमें।