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मरी हुई आत्माएँ / विश्वनाथप्रसाद तिवारी

मरी हुई आत्माएँ रात को निकल पड़ी हैं
सड़कें खाली करो
दरवाज़े खोल दो
वे अपने प्रेमियों के पास जाएंगी
वे सिंहासनों पर बैठेंगी
वे ताज़े फल खाएंगी
रोशनी की दमक तुम्हारी थी
अंधेरी रातें उनकी हैं।