मरूथली ! तुम भी कभी
सपना देखती होंगी
और देखा है कभी मृग ने
सपना देखती तुमको।
उसी को सत्य करने
भटकता फिरता है वह इस लाय में
यह रहा, यह रहा जल ... यह रहा ...
और आखिर हाँफता, बेदम
उगलता झाग
आँखें उलट देता है।
तुम्हारी आँख में क्या
-एक बूँद ही सही
जल भरता नहीं है ?
मरूथली ! तुम भी कभी
सपना देखती होंगी।
(1982)