बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
मरोड़ दई बहियाँ कैसें उठें।
पैले पार मोखों निंदिया आ गई।
बुझाय दये दियला कैसें उठें।
दूजे पार मोरी निंदिया टूटी
लगाये दई किवरिया कैसें उठें।
तीजे पर मोखों घायल कर दऔ
मो सों करे बतिया कैसें उठें।
चौथे पार मोय हँस हँस हेरें
तुमाई भरें गुदियाँ कैसे उठें।
मरोड़ दई बहियाँ कैसे उठें।