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मर्द बदलनेवाली लड़की / नेहा नरुका

मैं उन लड़कियों में से नहीं
जो अपने जीवन की शुरूआत
किसी एक मर्द से करती है
और उस मर्द के छोड़ जाने को
जीवन का अन्त समझ लेती हैं
मैं उन तमाम सती-सावित्रीनुमा
लड़कियों में से तो बिल्कुल नहीं हूँ

मैंने अपने यौवन के शुरूआत से ही
उम्र के अलग-अलग पड़ावों पर
अलग-अलग मानसिकता के
पुरुष मित्र बनाए हैं
हरेक के साथ
बड़ी शिद्दत से निभाई है दोस्ती

यहाँ तक कि कोई मुझे उन क्षणों में देखता
तो समझ सकता था
राधा, अनारकली या हीर-सी कोई रूमानी प्रेमिका

इस बात को स्वीकार करने में मुझे
न तो किसी तरह की लाज है
न झिझक
बेशक कोई कह दे मुझे
छिनाल, तिरिया-चरित्र या कुलटा वगैरह-वगैरह

चूँकि मैं मर्द बदलने वाली लड़की हूँ
इसलिए 'सभ्य' समाज के खाँचे में
लगातार मिसफ़िट होती रही हूँ
पतिव्रता टाइप लड़कियाँ या पत्नीव्रता लड़के
दोनों ही मान लेते हैं मुझे ‘आउटसाइडर’
पर मुझे इन सब की ज़रा भी परवाह नहीं
क्योंकि मैं उन लड़कियों में से नहीं
आलोचना और उलहाने सुनते ही
जिनके हाथ-पैर काँपने लगते हैं
बहने लगते हैं हज़ारों मन टसुए
जो क्रोध को पी जाती हैं
प्रताड़ना को सह लेती हैं
और फिर भटकती हैं इधर-उधर
अबला बनकर धरती पर

चूँकि मैं मर्द बदलने वाली लड़की हूँ
इसलिए मैंने वह सब देखा है
जो सिर्फ़ लड़कियों को सहेली बनाकर
कभी नहीं देख-जान पाती
मैंने औरतों और मर्दों दोनों से दोस्ती की
इस बात पर थोड़ा गुमान भी है
गाहे-बगाहे मैं ख़ुद ही ढिंढोरा पिटवा लेती हूँ
कि यह है ‘मर्द बदलने वाली लड़की’

यह वाक्य
अब मेरा उपनाम-सा हो गया है