मर्यादापुरुषोत्तम भगवन!
राम आपका स्वागत है।
जहाँ आपके आ जाने से,
'त्रेतायुग' का उद्धार हुआ।
जहाँ कर्म का और धर्म का,
प्रभु! विश्व-व्याप्त विस्तार हुआ।
वहाँ आज भी हर कण-कण में,
जय श्री राम समागत है।
जहाँ आपके वचन हमेशा,
जन-मन के आदर्श रहे हैं,
जहाँ आपके समुचित निर्णय,
सौष्ठव का संदर्श रहे हैं।
वहाँ राम की चरितबखानी,
मानस में भाषागत है।
जहाँ मात सीता रघुवर की,
अनुगामी बन साथ चली थीं।
जहाँ मान-मर्यादाएँ भी,
भरत त्याग को देख पली थीं।
वहाँ त्याग अरु प्रेम, प्रतिष्ठा,
सदियों से वंशागत है।
जहाँ आपके तप के सम्मुख,
सब देव हुए नतमस्तक थे।
जहाँ ब्रह्म 'रघुकुल' के साथी,
नारद जी बने प्रवर्तक थे।
वहाँ प्रतीक्षा में तुलसीदल,
अब तक खड़ा क्रमागत है।