नै जानौं की काल बुलैलं
ऐतै प्रातःकाल
मुर्गा-मुर्गी मौन आराधै
बकसऽ जीव हलाल।
केकरा सें की विनती करभेॅ
सबके आँखी फलाल
कोय दोस्त नजरी नै आवै
सभे लगै दलाल।
मौज मनैतै काटी-मारी
होलै की कंगाल
एक-एक केॅ बाल खीचतै
पकड़ी-पकड़ी खाल
आँखी कटियो नीन नै आवै
पलकें करै सवाल
कौनेॅ हमरोॅ रक्षा करतै?
यहेॅ आवै मलाल