मलूकदास का जन्म इलाहाबाद के कडा ग्राम में हुआ। पिता सुंदरदास जाति के क्षत्रिय थे। बचपन से ही मलूकदास को साधुसेवा का व्यसन था। पिता कंबल बेचने भेजते तो ये उन्हें दीन-दुखियों को बाँट देते, सडक पर कूडा देखते तो साफ करने लगते।
सदा ईश्वर-प्रेम में तल्लीन रहते। पुरी के जगन्नाथजी पर इन्हें बडी श्रध्दा थी। आज भी वहाँ भगवान को 'मलूकदास की रोटी का भोग लगता है। इनके विषय में कई चमत्कारी घटनाएँ भी प्रसिध्द हैं। ये फक्कड प्रकृति के साधु थे। इन्होंने 'ज्ञान बोध, 'रतनखान, 'भक्ति विवेक आदि अनेक ग्रंथ रचे। इनका काव्य 'ध्रुव चरित भी प्रसिध्द है। इसकी रचना दोहे-चौपाइयों में है, भाषा अवधी है।