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मस्टरनी मेहरारु / संजीव कुमार 'मुकेश'

ऊ हथ एम. ए. पास
हम मैट्रीक फेल
बात! समझावऽ ही।
मस्टरनी मेहरारु बन गेल
मास्टर साहब कहावऽ ही।

साड़ी, शुटर, बैग अऊ चश्मा,
बन गेल उनकर ड्रेस।
भोरे-भोर नञ् चाय अऊ नस्ता,
छुछे मिलऽ हो धौंस।
मुन्नी अऊ मंगरु के इस्कूल
साइकिल से पहूँचावऽ ही।
मस्टरनी मेहरारु बन गेल
मास्टर साहब कहावऽ ही।

कहिओ जन-गणना में बीजी,
कहियो मिंटींग में व्यस्त।
घर के आंटा, नून अऊ हरदी,
जुटबे में हूँ पस्त।
मुनीया माय-माय चिल्लावे
लोरी गाय सुतावऽ ही।
मस्टरनी मेहरारु बन गेल
मास्टर साहब कहावऽ ही।

इ डीगरी से काम नञ् चललई,
दूसर में एडमीशन।
यूनीवर्सीटी जाय पडे तऽ
पहूँचावऽ हूँ टीशन।
गोरु-गाय के सानी-पानी,
अपने भुखल टटावऽ ही।
मस्टरनी मेहरारु बन गेल
मास्टर साहब कहावऽ ही।

गलती कइलूं फर्जी डिगरी
नञ् ले के हम अइलूं।
नञ् सब गड़बड़झाला से हम
कदम से कदम मिलइलूं।
पिछला रोटी खा करके हम,
पेटे-पेट पछतावऽ ही।
मस्टरनी मेहरारु बन गेल
मास्टर साहब कहावऽ ही।