मष्तिष्क का हृदय, निश्चय ही
कुछ सच रहा है क़ैद
तुम्हारे भीतर ।
या फिर, झूठ, सब
झूठ, और कोई जन नहीं
इतना सच्चा कि जान सके
अन्तर ।
मष्तिष्क का हृदय, निश्चय ही
कुछ सच रहा है क़ैद
तुम्हारे भीतर ।
या फिर, झूठ, सब
झूठ, और कोई जन नहीं
इतना सच्चा कि जान सके
अन्तर ।