ऊँची चढ़ने लगीं कीमतें,
दूनी महँगी घास हुई,
गर्दभ जी ने खबर सुनाई,
पत्नी बहुत उदास हुई।
बोली-'बुद्धु के पापा जी,
है मुझको आशा पूरी,
तुम भी कल से ही कर दोगे,
दूनी अपनी मजदूरी।'
गर्दभ बोले-'बुद्धु की माँ,
यह होगा संभव कैसे?
मैं वैसा मजदूर नहीं हूँ,
कौन मुझे देगा पैसे?
सुनता हूँ, लोगों की अक्लें-
चरती हैं अब घास, प्रिये!
इतनी ज्यादा महँगाई की,
यही वजह है खास, प्रिये!'