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महज़ चिंगारी मगर / नीना कुमार

महज़ चिंगारी मगर
फैल जाऊं अगर
आतिश-ए-सहरा बनने की ताक़त हूँ मैं
सुर्ख़ बूँद ही सही
पर बिखर जो गई
रंग-ए-दरया बन जाने की हिकमत हूँ मैं
बू-ए-गुल की तरह
महकने की वजह
सबा-ए-गुलशन की छोटी सी चाहत हूँ मैं
आज़मा ले हवा
के हूँ मैं वो दवा
बीमारी-ए-मौसम की राहत हूँ मैं
परवानों की कशिश
मेरी तपन-ओ-तपिश
शमा हूँ, अंधेरों की शामत हूँ मैं
जो आ ही गया
हूँ मैं वो लम्हा
वक़्त-ओ-तारीख मैं तो सलामत हूँ मैं

रचनाकाल: 4 अगस्त 2013