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महफ़िल में / विश्वनाथप्रसाद तिवारी

चुप रहो इस महफ़िल में
रंडियों और भड़ुओं की उछल-कूद देखते रहो
हँसो
हँस-हँस कर दर्द टालते रहो
लोग तुम में दिलचस्पी ले रहे हैं
क्योंकि तुम नाटक में शरीक हो
ख़बरदार, कुछ बोलने की ज़ुर्रत न करना
ये सब मिलकर तुम्हारा मुँह नोच लेंगे
ढकेल देंगे नीचे बजबजाती नालियों में
इनमें से कोई अभी सुनने को तैयार नहीं।