दर्द की तलब जिन्हें
उन्हें चैन कहाँ रब्बा !
न पीर की फूंक का असर
न मौलवी का पढ़ा लगे
न फकीर की लगे दुआ
न दरवेश की ताबीज का
असर हुआ करे कोई
मोहब्बत की आरामगाह
महबूब की गलियाँ !
दर्द की तलब जिन्हें
उन्हें चैन कहाँ रब्बा !
न पीर की फूंक का असर
न मौलवी का पढ़ा लगे
न फकीर की लगे दुआ
न दरवेश की ताबीज का
असर हुआ करे कोई
मोहब्बत की आरामगाह
महबूब की गलियाँ !