महल, अटारी, बाग़, बग़ीचा, मेला, हाट घुमा कर देख
फिर भी बच्चा ना सोये तो लोरी एक सुना कर देख
चार दिनों में भर जाएगा दिल इन मेलों, खेलों से
चाह रहेगी सदा नवेली मन को रोग लगा कर देख
जंतर-मंतर, जादू-टोने, झाड़-फूँक, डोरे-ताबीज़
छोड़ अधूरे-आधे नुस्खे ग़म को गीत बना कर देख
शब के बाद उजाले जैसा बचता ही जाऊँगा मैं
चाहे जितनी बार मुझे तू ख़ुद से जोड़ घटा कर देख
उलझन और गिरह तो `हस्ती' हर धागे की किस्मत है
आज नहीं तो कल उलझेगी जीवन-डोर बचा कर देख