Last modified on 19 सितम्बर 2016, at 03:10

महाकाव्य ज़िन्दगी हमारी / रमेश रंजक

जहाँ-जहाँ असहाय हुए हम
भेड़ हुए हैं, गाय हुए हम।

लोभ-लाभ ने कतरन कर दी
चूहों ने सब जिल्द कुतर दी
महाकाव्य जिन्दगी हमारी
खलनायक ने दुख से भर दी

गति पर अर्द्ध विराम लगाया
बरबस एक सराय हुए हम।

सड़क बना डाली पगडण्डी
और सामने किए शिखण्डी
शकुनी दाँव चलाया ऐसा
हर कमज़ोर, भुनाई हुण्डी

क्रूर कसाईपन से बचकर
छोटे से अध्याय हुए हम।