महादेवी आपसे पहले आपके घरेलू पशुओं से
मिलना चाहती हूँ
आपकी कविता से ज़्यादा आपके गद्य संसार की
यात्रा करना चाहती हूँ
कविता लेकर क्या करूँगी
मैं नीर भरी दुःख की बदली नहीं हो सकती
न ही मेरा कोई रहस्यमयी प्रेमी है
एक पति है जो रोटी कमाकर लाता है
जो कभी कभी जता देता है प्रेम
कभी कभी लगा देता है डाँट
कभी दांत
कभी नाखून
महादेवीए मुझे आपकी कविता से ज़्यादा
आपके मोटे चश्मे की ज़रूरत है
देख सकूँ दूर तक देख सकूँ देर तक
देख सकूँ अपनी बहनों की पीठ पर
गुमचोट
महादेवी मुझे आपकी सहेली
सुभद्राकुमारी चौहान और लक्ष्मीबाई की तरह
मर्दानी नहीं होना है
मुझे स्त्री ही रहना है
जो मार खा रोती नहीं
जो मारनेवाला का हाथ पकड़ती है
जो बेधड़क पकड़ लेती है उसका हाथ
जो करता है उससे प्रेम