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महादेव विनय / शब्द प्रकाश / धरनीदास

माँथे माहताब औ जटामें आबे-गंग जा के, जेरदस्त ज्वाब सेज-सेज मौज केत है।
गावके सवार गाजे कंठ-हार मार, काल वुन्द लाय छार चौंर ढार भूत प्रेत है॥
लोचन सुलाल शेर-खाल में निहाल, मुंडमाल है विशाल सो धरनि-हिय हेत है।
वेल के पताये गाल-ताल के वजाये, भोला भंग के चढ़ाये दान व्रह्म-ज्ञान देह है॥6॥